अफसोस होता है... Sad shayri
ऐसा ग़म दे गया...
हर शरारत को जिसकी था माना मोहब्बत,कोई बनाके यूँ अपना ज़हर दे गया,
सितम ऐसा जमाने में कोई और नहीं,
वो होकर जुदा ऐसा ग़म दे गया।
बहारों से लड़ा था मैं जिसके लिए,
वो उजड़ा सा मुझको चमन दे गया,
मुझे रहना नहीं अब एक पल भी यहाँ,
वो ज़ख्मों से भरा एक शहर दे गया
बदल जाओ वक्त के साथ
बदल जाओ वक्त के साथ
या फिर वक्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखो
अफसोस होता है...
हमारी पसंद कोई और चुरा लेता है,
ख्वाब हम देखते हैं और
हकीक़त कोई और बना लेता है।
लिखना था कि
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त...
आंसू हैं कि कलम से
पहले ही चल दिए।
ज़िंदगी में इतने ग़म थे...
कौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था,
ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था,
'अर्श' उनकी झील सी आँखों का उसमें क्या क़ुसूर,
डूबने वालों को ही गहराई का अंदाज़ा न था।
तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो,
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो।
प्यार का ताल्लुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे और सिसक रहा था वो।
ग़म छुपाने की जरुरत...
इसलिए डरता हूँ सच बताने में,
ग़म छुपाने की जरुरत अब नहीं पड़ती,
क्यूँ माहिर हो गया हूँ मुस्कुराने में।
दर्द की दास्तान अभी बाकी है,
मोहब्बत का इम्तेहान अभी बाकी है,
दिल करे तो ज़ख्म देने आ जाना,
दिल ही टूटा है जान अभी बाकी है।
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